रविवार, 7 जुलाई 2013

रास्ता भटक गई कलम..




             सुना था की कलम की धार तलवार से भी तेज़ होती है.. यह किसी की भी ज़िन्दगी में बदलाव ला सकती है.. देश के हक में उठे तो सैनिक का कार्य करती है और भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखे तो पुलिस तन्त्र की तरह जनता की सेवा करती है..

लेकिन जो हालात अपने देश की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पैदा कर रही है उसे देखकर तो लगने लगा है की यह एक समानांतर "आतंक" फैलाने का कार्य ज्यादा कर रही है... उत्तराखंड त्रासदी के पहले दो दिन तो मिडिया में वहां की खबरे ऐसे दिखाई जा रही थी जैसे दूरदर्शन में मूवी के दौरान Advertisement दिखाते थे... उन दिनों "मोदी की दिल्ली यात्रा" नितीश का BJP को छोड़ना इत्यादि इन्हें ज्यादा महत्वपूर्ण लगता था... अचानक इन्हें लगा की त्रासदी तो बड़ी है और TRP बढानें में सहायता कर सकती है तो सारे कैमरे उत्तराखंड की और घूम गए..

तब हमें भी लगा की मीडिया की मदद से जनता को कुछ फायदा जरुर होगा... चाहिए तो यह था की वो लोग जहाँ जा रहे हैं वहां के लोगो की पहचान सूचि को टेलीकास्ट करते... उल्टा उन्हें यह बताना ज्यादा जरुरु लगा की " हमारी टीम सबसे पहले" केदारनाथ पहुंची है... यह बताने में समय बर्बाद करते देखा गया की वो लोग वहां पहुंचे कैसे... वही मीडिया केंद्र और राज्य सरकार पे ऊँगली उठाती दिखी इस बात के लिए की सरकार के पास पन्द्रह मिनट का समय था लोगो को बचाने का लेकिन satellite फ़ोन नहीं होने की वजह से सरकार विफ़ल हुई.. कोई पूछे इन्हें की पन्द्रह मिनट में कोई क्या कर सकता था..

Tv पे सिर्फ वही लोग दिखाए गए जिन्हें सरकार से शिकायत थी की उन्हें वहां खाने पीने रहने की तकलीफ हुई.... हम सभी उनको हुए कष्ट को समझ सकते हैं लेकिन यह भी तो सोचने की बात है की कोई सरकार एक लाख लोगो को जल्दी से निकालने की व्यवस्था करती यां वहां हो रही लूट को रोकने की..??  जालंधर के एक  होटल व्यवसाई अपने परिवार समेत उसी त्रासदी में फंस गए थे.. एक रात किसी ने अपनी झोंपड़ी में रहने के लिए उनसे पांच हजार लिए... उन्होंने ख़ुशी से दिए क्योंकि एक तो उन्हें सहारा मिला और फिर उन्होंने उस घर में रहने वालों के लिए सोचा की वो लोग इस त्रासदी के बाद कैसे रहेंगे बिना रोज़गार और पैसे के...

यही बड़ी सोच मीडिया को रखनी चाहिय थी की पहले यात्रियों को बचाने में सहायता करते फिर वहां रहने वालों को फिर से कैसे बसाया जाये उसपे सरकारी कोशिशो के बारे में जनता को बताते... लेकिन यहाँ तो सिवाए आतंक फ़ैलाने के और कोई काम नहीं हो रहा... बार बार बताया जा रहा था की सरकार निकम्मी है बस सैनिक भगवान् का रूप लेकर बचाव कर रहे हैं... उनका कहने का तत्प्राए यही था की सैनिक खुद ही बैरकों से निकल के आ गए लोगो को बचाने.... उन्हें कोई समझाए सैनिक भी तो सरकार के कहने पे ही आयेंगे... और सैनिको ने वही किया जो उनका काम था... पूरा सरकारी तन्त्र वहां जुटा हुआ था लोगो के बचाव में...

कोई मुझे गलत समझे तो में बताना चाहूँगा की मुझे बहुत दिनों तक यह नहीं पता था की बहुगुणा सरकार कांग्रेस की है.. मुझे जानने वाले जानते हैं की मेरी  राजनीति में कोई रुची नहीं.... बस जो गलत है वो गलत और जो सही है वो सही...

और अपने मीडिया वाले बधाई के पात्र हैं की उनकी चालों में अपने नालायक राजनेता आ गए और लगे मूर्खों की तरह ब्यान बाजी करने...  पता नहीं कब तक ऐसी मुर्खता यह लोग करते रहेंगे और मीडिया वाले अपना बेहूदा खेल खेलते रहेंगे.... आज मेरे किसी बहुत ही प्रिय ने सवाल किया की कब तक लोग मीडिया की बेकार और बेमतलब खबरे  और सरकार की घटिया बयानबाजी झेलते रहेंगे... मैंने उन्हें एक ही जवाब दिया की लोग इनकी बातें सुनते ही कब हैं.... लोग खबरी चैनल खबरों के लिए कम और "सास बहु साज़िश" देखने के लिए ज्यादा  लगाते हैं... लेकिन यह तो पक्का है की इन खबरी चैनलों पे लगाम लगाने का समय अब आ गया है...