लेकिन मुझे हैरानी इस बात की हो रही है की यह मांग करने वाले अधिकतर वो लोग हैं जिन्हें सिर्फ अपने समुदाय पे हुए ज़ुल्म दिखते हैं... कोई बताएगा की उनसे कौन माफ़ी मांगेगा जिनके भाई बेटे यां बाप को सिर्फ हिन्दू होने की खातिर पंजाब में बसों, रेलगाड़ियों से निकाल के यां राह चलते गोली से उड़ा दिया गया... कोड़ियों के भाव अपनी ज़मीन जायदाद बेचने के लिए मजबूर किया गया जिसके चलते बड़ी संख्या में हिन्दू पंजाब छोड़ दुसरे राज्यों में चले गए.. दुःख की बात यह है की आतंक फ़ैलाने वालों के लिए सजा माफ़ी की मांग की जा रही है और जिनके साथ अन्याय हुआ उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं..
उन हिंदुयों का क्या जो जम्मू कश्मीर से हिंसा और आतंक की वजह से पलायन कर गएँ हैं ... क्या गुजरात दंगो के लिए माफ़ी मांगने वालों को कश्मीरी आतंकियों और उन्हें साथ देने वालों से भी माफ़ी नहीं मंगवानी चाहिए ?.. दंगे कहीं भी हों, हिंसा किसी भी कारण हो, आतंकवाद किसी भी समुदाय के हक में हो वो गलत था गलत है और हमेशा गलत ही रहेगा... नेता लोग इस आग से हाथ सेंकते हैं तो सेंकते रहें लेकिन हम "आम" लोग कब तक इनकी बातों में आते रहेंगे..
अगर माफ़ी माँगना ही मुददा है तो माफ़ी तो हिंदुयों से भी मांगी जानी चाहिए... झेला तो इन्होने भी बहुत कुछ है.. अगर दिल्ली-गुजरात के दंगे एक हफ्ते चले थे तो पंजाब में तो आतंक पूरा एक दशक चला है.. जम्मू कश्मीर में तो दशकों से चल रहा आतंक अभी भी जारी है..क्योंकि हिन्दू अल्पसंख्यक नहीं है तो क्या उनके परिवार वालों को किसी अपने के जाने का दर्द नहीं होता.. क्या यह हिंदुयों के साथ अन्याय नहीं है ?... मैं मानता हूँ की दिल्ली दंगे यां गुजरात दंगे बेहद गलत थे और उनकी जितनी निंदा की जाये कम है... लेकिन साथ ही पंजाब में जो हिंदुयों के खिलाफ हिंसा हुई थी उसकी भी जोरदार निंदा होनी चाहिए.. हिंसा करने वालों को शहीद का नाम देकर "भगत सिंह" जैसे सच्चे शहीदों का अपमान नहीं किया जाना चाहिय...
वैसे मैं क्यों दुखी हो रहां हूँ ..!! मैं तो खुद अलप्संख्यक की श्रेंणी में आ पहुंचा हूँ.. अब तो मुझे भी विशेषाधिकार मिलेंगे जो मुझे कभी चाहिए ही नहीं थे क्योंकि मैं तो पहले से ही एक भारतीय होने का पूरा आनंद ले रहा था... खुद को भारतीय हिन्दू जैन समझ रहा था.. और अब हिन्दू से अलग करके "जैन" बना दिया गया है.. तो हिंदुयों के साथ अन्याय होता है तो हो...मुझे क्या !!! ... काश मैं भी यह सोच के खुश रह पाता !!!!
दंगे की कोई शक़्ल नहीं होती/दंगे का कोई मज़हब नहीं होता/दंगा महज़ उन्माद का अन्धड़ तूफान है जो अपनी ख़ौफनाक हवा में इंसानियत को उड़ा ले जाता है । इतिहास साक्षी है कि इस देश को प्रांत,बोली,ज़ात के नाम पर बांट-बांट कर अनेकों ने अपनी रोटियां सेंकी है पर अफसोस है कि हम बीती बातों से कुछ सार्थक सीख नहीं ले पाये । सत्ता पर क़ाबिज होने की दौड़ में अक्सर पुराने ज़ख़्मों को कुरेद-कुरेद कर हरा कर दिया जाता है पर अल्पसंख्यक/बहुसंख्यक/जाति-प्रजाति में बंटे हुये लोगों अब भी सचेत हो जाओं वरना क़िस्सा भी ना बाक़ी रहेगा तुम्हारा दास्तानों में ॥
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शोएब भाई... बहुत सही संदेश दिया आपने....अल्पसंख्यक/बहुसंख्यक/जाति-प्रजाति में बंटे हुये लोगों अब भी सचेत हो जाओं वरना क़िस्सा भी ना बाक़ी रहेगा तुम्हारा दास्तानों में ॥
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